सत्संग योग
[ चारो भाग ]

महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज
अखिल भारतीय सन्तमत-सत्संग-प्रकाशन समिति
महर्षि मेँहीँ आश्रम, कुप्पाघाट, भागलपुर-3 , बिहार (भारत)

भूमिका

सत्पुरुषों-सज्जन पुरुषों-साधु-सन्तों के संग का नाम ‘सत्संग’ है। इनके संग में इनकी वाणियों की ही मुख्यता होती है। ‘सत्संग-योग’ के तीन भागों में इन्हीं वाणियों का समागम है। अनेक सत्पुरुषों और सन्तों के संग का प्रतिनिधि-स्वरूप यह ‘सत्संग-योग’ है। यह चार भागों में लिखा गया है। वेदों, उपनिषदों, श्रीमद्भगवद्गीता, श्रीमद्भागवत, अधयात्म-रामायण, शिव-संहिता, ज्ञान-संकलिनी तन्त्र, बृहत्तन्त्रसार, ब्रह्माण्ड पुराणोत्तर गीता, महाभारत और दुर्गा सप्तशती इत्यादि के मोक्ष-संबंधी सदुपदेशों का लाभ प्रथम भाग से प्राप्त होता है। दूसरे भाग में भगवान महावीर, भगवान बुद्ध, भगवान शंकराचार्य, महायोगी गोरखनाथजी महाराज, संत कबीर साहब, संत रैदास, सन्त कमाल साहब, गुरु नानक साहब, दादू दयाल साहब, पलटू साहब, सुन्दरदासजी महाराज, गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज, भक्तप्रवर सूरदासजी महाराज, हाथरस निवासी तुलसी साहब* , राधास्वामी साहब, श्रीरामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्दजी महाराज, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, बाबा देवी साहब इत्यादि बावन सन्तों, महात्माओं और भक्तों के सदुपदेश हैं।
तीसरे भाग में वर्तमान विद्वानों और महात्माओं के उत्तमोत्तम वचन हैं, जो ‘कल्याण’ पत्र तथा अन्य ग्रन्थों से उद्धृत हैं। इन तीनों के अधययन और मनन से ब्रह्म, ईश्वर और परमात्मा का, ईश्वर-भक्ति का, बन्धान तथा मोक्ष का उत्तम ज्ञान होता है। ईश्वर-भक्ति का और मोक्ष का, इनमें एक ही साधन-ज्ञान तथा योगयुक्त भक्ति है। इन तीनों भागों का उत्तम मनन करने पर वेद-वेदान्त में और सन्तों के मत में मोक्ष-धर्म-सम्बन्धाी विचारों का तथा साधन-मार्ग की पूर्ण एकता का उत्तम निर्णय हो जाता है। और, ‘श्रीमद्भगवद्गीता-रहस्य’ में प्रकाण्ड विद्वान लोकमान्य बालगंगाधर तिलक महोदयजी लिखित यह वाक्य- ‘सारे मोक्षधर्म के मूलभूत अधयात्मज्ञान की परम्परा हमारे यहाँ उपनिषदों से लगाकर ज्ञाने"वर, तुकाराम, रामदास, कबीरदास, सूरदास, तुलसीदास इत्यादि आधुनिक साधु-पुरुषों तक अव्याहत चली आ रही है।’ (गीता-रहस्य, पृष्ठ 250) पूर्ण रूप से चरितार्थ हो जाता है।
इन भागों में भक्ति और मुक्ति के साधन में सत्संग, गुरुसेवा, परमप्रभु परमात्मा में अत्यन्त प्रेम, सदाचार, हृदय की शुद्धि, जप और धयान- इन सातों का ही साधन मुख्य करके कहा गया है। धयान-साधन में स्थूल धयान और सूक्ष्म धयान, दोनों का वर्णन है। सूक्ष्म धयान में विन्दु-धयान-ज्योतिधर्यान-दृष्टियोग का तथा नादानुसन्धाान वा नाद-धयान वा सुरत-शब्द-योग का वर्णन पाया जाता है।
सत्संग-द्वारा श्रवण-मनन से मोक्षधर्म-सम्बन्धाी मेरी जानकारी जैसी है, उसका ही वर्णन चौथे भाग में मैंने किया है। परमात्मा, ब्रह्म, ई"वर, जीव, प्रकृति, माया, बन्धा-मोक्षधर्म वा सन्तमत की उपयोगिता, परमात्म-भक्ति और अन्तर-साधन का सारांश साफ़-साफ़ समझ में आ जाय-इस भाग के लिखने का हेतु यही है। इसके अतिरिक्त इस भाग के अन्त में मेरे कुछ पद्य भी छापे गए हैं। इनमें पाठकों को जो त्रुटियाँ ज्ञात हों, उनके लिए वे मुझे अज्ञ जानकर क्षमा करें और जिन बातों में उन्हें त्रुटि नहीं ज्ञात हो, हो सके तो उनसे वे लाभ उठावें।
‘सत्संग-योग’ के पढ़ने से इस बात का यथार्थतः निर्णय हो जाता है कि वेद-वेदान्त और सन्तों के मत में यह बात विशेषकर कही गई है कि भक्त अन्तर्मार्गी बने। अन्तर्मार्गी बनने से वह इन्द्रिय-ग्राम से-जग-आवरणों से छूटकर कैवल्य दशा में प्राप्त होकर ही अपने इष्ट के स्वरूप को जीते-जी प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त कर सकेगा। मरने के बाद की परमात्म-प्राप्ति और मुक्ति सन्तवाणी को मान्य नहीं है।
अन्त में उन सत्संगी महाशयों को मेरा हार्दिक धन्यवाद है, जिनके परिश्रम से छपाई के कार्य में सहायता मिली।
सत्संग-सेवक
मेँहीँ 

* [इनकी वाणी में ‘घटरामायण’ ग्रन्थ के भी उद्धरण सम्मिलित हैं; परन्तु घटरामायण में वर्णन है कि "यह ग्रन्थ सात काण्ड रामायण (रामचरितमानस) के कर्त्ता गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज का बनाया हुआ है और उन्होंने इसे सात काण्ड रामायण बनाने के पहले ही बनाया।" परन्तु इस ग्रन्थ का प्रचार तुलसी साहब के मन्दिर (शहर हाथरस, जिला अलीगढ़) से ही हुआ है, इसलिए इसके कर्ता, तुलसी साहब को ही लोग जानते हैं। मेरे विचार में यह ग्रन्थ गोस्वामी तुलसीदासजी कृत और ‘रामचरितमानस’ के पहले का बना प्रतीत नहीं होता। इसके अन्दर की युक्तियुक्त, सत्य प्रतीत होनेयोग्य बातें सन्त तुलसी साहब की हैं-विश्वास करनेयोग्य है; क्योंकि तुलसी साहब के ऐसे सच्चे सन्त के सत्य, युक्तियुक्त बातें ही कही जानेयोग्य हो सकती हैं। इसीलिए मैंने ‘घटरामायण’ के उद्धरणों को सन्त तुलसी साहब की वाणी के अन्दर रखा है।] 

विषय-सूची

विषय 
सत्संग-योग, प्रथम भाग (40)

01. वेद-मन्त्र (‘वैदिक विहंगम-योग’ से संगृहित)
02. केनोपनिषद् के मन्त्र
03. कठोपनिषद् के मन्त्र
04. मुण्डकोपनिषद् के मन्त्र
05. प्रश्नोपनिषद् के मन्त्र
06. ईशावस्योपनिषद् के मन्त्र
07. छान्दोग्योपनिषद् के मन्त्र
08. मुक्तिकोपनिषद् के मन्त्र
09. ब्रह्मोपनिषद् के मन्त्र
10. नादविन्दूपनिषद् के मन्त्र
11. ध्यानविन्दूपनिषद् के मन्त्र
12. शाण्डिल्योपनिषद् के मन्त्र
13. वराहोपनिषद् के मन्त्र
14. मण्डलब्राह्मणोपनिषद् के मन्त्र
15. ब्रह्मविन्दूपनिषद् के मन्त्र
16. श्वेताश्वतरोपनिषद् के मन्त्र
17. मैत्रयण्युपनिषद् के मन्त्र
18. मैत्रेय्युपनिषद् के मन्त्र
19. क्षुरिकोपनिषद् के मन्त्र
20. तेजोविन्दूपनिषद् के मन्त्र
21. योगतत्त्वोपनिषद् के मन्त्र
22. त्रिपाद्विभूति महानारायणोपनिषद् के मन्त्र
23. महोपनिषद् के मन्त्र
24. शारीरकोपनिषद् के मन्त्र
25. योगशिखोपनिषद् के मन्त्र
26. श्रीजाबालदर्शनोपनिषद् के मन्त्र
27. जाबालोपनिषद् के मन्त्र
28. गर्भोपनिषद् के मन्त्र
29. श्रीमद्भगवद्गीता-रहस्य अथवा कर्मयोग से उद्धृत-श्रीमद्भगवद्गीता के चुने हुए श्लोकों के केवल अर्थ (लोकमान्य बालगंगाधर तिलक महाशय कृत )
30. श्रीमद्भागवत
31. अध्यात्म-रामायण (पं0 रामेश्वर भट्ट-कृत टीका)
32. शिव-संहिता
33. ज्ञान-संकलिनी तन्त्र
34. बृहत्तन्त्रसार
35. बह्मा्रण्डपुराणोत्तर गीता
36. दुर्गा सप्तशती
37. महाभारत
38. संक्षिप्त पद्मपुराणांक (कल्याण)
39. स्कन्दपुराण
40. मनुस्मृति

सत्संग-योग, द्वितीय भाग (53)

01. भगवान् महावीर की वाणी
02. भगवान् बुद्ध के सदुपदेश
03. भगवान् शंकराचार्यजी महाराज की वाणी
04. महायोगी गोरखनाथजी महाराज के पद्य
05. स्वात्मारामजी महाराज के वचन
06. प्रभु ईशा मसीह के सदुपदेश
07. संत कबीर साहब की साखी और शब्द आदि
08. संत रैदासजी की वाणी
09. संत कमाल साहब की वाणी
10. धर्मदासजी का शब्द
11. गुरु नानक साहब की वाणी
12. ॐ मात्र बाबा श्रीचन्दजी की
13. सन्त दादू दयाल साहब की वाणी
14. सन्त चरणदासजी को वाणी
15. सहजोबाई की वाणी
16. सन्त दरिया साहब (बिहारी) की वाणी
17. सन्त दरिया साहब (मारवाड़ी) की वाणी
18. सन्त केशव दासजी की अमीघूँट
19. बाबा धरनीदासजी की वाणी
20. सन्त जगजीवन साहब की वाणी
21. सन्त पलटू साहब की वाणी
22. सन्त गरीबदासजी की वाणी
23. सन्त यारी साहिब की वाणी
24. सन्त दूलनदासजी की वाणी
25. सन्त बुल्ला साहिब की वाणी
26. सन्त गुलाल साहिब की वाणी
27. सन्त सुन्दरदासजी की वाणी
28. परमहंस लक्ष्मीपतिजी महाराज के दोहे
29. शिवनारायण स्वामीजी के वचन
30. गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की वाणी
31. भक्तप्रवर सूरदासजी महाराज के वचन
32. श्रीदेवतीर्थ स्वामी (श्रीकाष्ठ-जिह्वा स्वामी) जी के वचन
33. श्रीइन्द्रनारायण दासजी का लिखाया रामरक्षास्तोत्रम्
34. श्रीसुतीक्ष्ण दास रामानन्दी साधु से लिखाया शब्द
35. कविरंजन रामप्रसाद सेनजी के बंगला पद्य
36. सन्त तुलसी साहब (हाथरसवाले) की वाणी
37. सन्त तुलसी साहब के शिष्य सूर स्वामीजी के शब्द
38. राधास्वामी साहब की वाणी
39. रायबहादुर शालिग्राम साहब के वचन
40. लोकमान्य बालगंगाधर तिलक कृत श्रीमद्भगवद्गीता-रहस्य के कुछ वचन
41. परम भक्तिन मीराबाई की वाणी
42. साधु मानपुरीजी का शब्द
43. राजयोगी श्रीटीकारामनाथजी महाराज का वचन
44. जैनयोगी आनन्दघनजी का शब्द
45. बाबा कीनारामजी का भजन
46. स्वामी ब्रह्मानन्दजी के वचन
47. सद्गुरु बाबा देवी साहब के वचन
48. श्रीरामकृष्ण परमहंसदेवजी के वचन
49. स्वामी विवेकानन्दजी महाराज के वचन
50. बाबा देवी साहब का पत्रांश (श्रीधीरजलालजी के नाम से)
51. श्रीधीरजलाल साहब के पद्य
52. परमहंस ध्यानानन्द साहब के शब्द
53. श्रीतेतरदासजी सत्संगी के पद्य

सत्संग-योग, तृतीय भाग (30)

01. उड़िया स्वामीजी महाराज के विचार 
02. अष्टांग योग (लेखक-श्रीरामचन्द्र रघुवंश ‘अखण्डानन्द’ ) 
03. योग का विषय-परिचय (ले0-महामहोपाध्याय श्रीगोपीनाथजी-कविराज, एम0 ए0) 
04. उपनिषदों में योग ले0-(स्वामी श्रीरघुवराचार्य जी महाराज) 
05. श्रीयोगवाशिष्ठ में योग (ले0-प्रो0 डॉ0 श्री भीखनलालजी आत्रेय, एम0 ए0, डी0 लिट्0) 
06. आत्मज्ञान प्राप्त करने का सरल उपाय-योग (ले0-ब्रह्मचारी श्रीगोपाल चैतन्यदेवजी महाराज) 
07. नादानुसन्धान (ले0-स्वामी श्रीएकरसानन्दजी सरस्वती महाराज) 
08. जपयोग (ले0-योगी श्रीबाल स्वामीजी महाराज) 
09. योग क्या है (ले0-योगी श्रीभूपेन्द्रजी सान्याल) 
10. श्रीशंकराचार्य-कृत : मोह-मुद्गर [ दिनचर्या से उद्धृत]
11. प्राणायाम का शरीर पर प्रभाव (ले0-स्वामी श्रीकुवलयानन्दजी) 
12. हठयोग और प्राचीन राजविद्या अथवा राजयोग (ले0- एक दीन) 
13. वेदान्त का महान् वैलक्षण (ले0-स्वामी अभेदानन्दजी, पी-एच0 डी0) 
14. वेदान्त का अर्थ और उसकी लोकमान्यता (ले0-श्री पी0 के0 आचार्य, एम0 ए0, पी-एच0 डी0, डी0 लिट्0, आई0 ई0 एस0) 
15. शब्दाद्वैतवाद (ले0-श्री बी0 कुटुम्ब शास्त्री) 
16. वेदान्त-शिक्षा की कुछ बातें (ले0-डॉ0 एम0 एच0 सैयद, एम0 ए0, पी-एच0 डी0, डी0 लिट्0) 
17. अवतार-तत्त्व (लेखक का नाम नहीं दिया गया है) 
18. नाद-ब्रह्म-मोहन की मुरली (लेखक का नाम नहीं दिया गया है) 
19. वेदान्त-दर्पण (ले0-बालकरामजी विनायक) 
20. कबीर साहब और वेदान्त (ले0-महन्त श्रीरामस्वरूप दासजी) 
21. वेद में संत (ले0-वेददर्शनाचार्य श्री गंगेश्वरानंदजी महाराज) 
22. संत चर्चा (ले0-पं0 श्रीकृष्णदत्तजी भारद्वाज, एम0 ए0, आचार्य, शास्त्री, वेदान्त-विद्यार्णव) 
23. संत-तत्त्व (ले0-स्वामी श्रीशुद्धानंदजी भारती) 
24. ईसाई संत (ले0-श्रीसम्पूर्णानदजी) 
25. कल्याण, संतांक, पृष्ठ 454 से उद्धृत 
26. श्रीरामचरितमानस का दार्शनिक सिद्धांत (ले0-स्वामी एकरसानंदजी) 
27. स्वामी श्रीभूमानंदजी के वचन 
28. देव तथा ईश्वर (ले0-पं0 कृष्णदत्तजी भारद्वाज शास्त्री, बी0 ए0) 
29. महात्मा मोहनदास करमचंद गाँधीजी के विचार 
30. स्वामी श्रीदयानंद सरस्वतीजी की वाणी 


विषय 
सत्संग-योग, चतुर्थ भाग (गद्य 34 + पद्य 40)


पारा 1 से 10 तक
01. सन्तमत किसे कहते हैं ? सन्तमत की मूल भित्ति उपनिषद् के वाक्य ही हैं
02. सुरत-शब्द-योग ही सन्तमत की विशेषता है। नाम-भजन तथा ध्वन्यात्मक सारशब्द का भजन एक ही है-
03. सारे सान्तों के पार में एक अनन्त अवश्य ही है। यह एक और अनादि है, यह जड़ातीत, चैतन्यातीत अचिन्त्यस्वरूप है, मायिक विस्तृतत्व-विहीन है, यही सन्तमत का परम अध्यात्म-पद है । अपरा और परा प्रकृतियाँ

पारा 11 से 20 तक
03. सारे सान्तों के पार में एक अनन्त अवश्य ही है। यह एक और अनादि है, यह जड़ातीत, चैतन्यातीत अचिन्त्यस्वरूप है, मायिक विस्तृतत्व-विहीन है, यही सन्तमत का परम अध्यात्म-पद है । 
04. अपरा और परा प्रकृतियाँ , अंशी और अंश, आत्म-अनात्म तथा क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विचार

पारा 21 से 30 तक
05. कारण-महाकारण के विचार, परम प्रभु की प्राप्ति के बिना कल्याण नहीं
06. क्षर-अक्षर का विचार, परम प्रभु में मौज हुए बिना सृष्टि नहीं होती । मौज कम्पमय है- आदिशब्द सृष्टि का साराधार है

पारा 31 से40 तक
06. क्षर-अक्षर का विचार, परम प्रभु में मौज हुए बिना सृष्टि नहीं होती । मौज कम्पमय है- आदिशब्द सृष्टि का साराधार है
07. अनादिनाद का ही नाम रामनाम, सत्यनाम, ॐकार है, शब्द का गुण, सृष्टि के दो बड़े मंडल, अपरा प्रकृति के चार मण्डल, पिण्ड और ब्रह्माण्ड के मण्डलों का सम्बन्ध, भिन्न-भिन्न मण्डलों के केन्द्र, अनन्त, अनाम, पिण्ड-ब्रह्माण्ड का सांकेतिक चित्र 

पारा 41 से 50 तक
07. अनादिनाद का ही नाम रामनाम, सत्यनाम, ॐकार है, शब्द का गुण, सृष्टि के दो बड़े मंडल, अपरा प्रकृति के चार मण्डल, पिण्ड और ब्रह्माण्ड के मण्डलों का सम्बन्ध, भिन्न-भिन्न मण्डलों के केन्द्र, अनन्त, अनाम
08. केन्द्रीय शब्दों का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर है, सूक्ष्म शब्द स्थूल में व्यापक तथा विशेष शक्तिशाली होता है, केन्द्रीय शब्दों को पकड़कर सर्वेश्वर तक पहुँच सकते हैं
09. प्रकृति अनाद्या कैसे है ? कैवल्य शरीर चेतन है

पारा 51 से 60 तक 
10. अनन्त से बढ़कर कोई सूक्ष्म और विस्तृत नहीं हो सकता, अपरिमित परिमित पर शासन करता है
11. अन्तर में चलना परम प्रभु सर्वेश्वर की भक्ति है-यही आन्तरिक सत्संग है, मन की एकाग्रता एक विन्दुता है
12. दूध में घी की तरह मन में सुरत है, सृष्टि के जिस मण्डल में जो रहता है, वह वहीं का अवलम्ब लेता है
13. दृष्टि-योग क्या है? दिव्य दृष्टि कैसे खुलती है-
14. शब्द-साधन का मन पर प्रभाव, पंच महापाप, निम्न देशों के शब्द पकड़कर ऊँचे लोकों के शब्द पकड़ सकते हैं

पारा 61 से 70 तक 
14. शब्द-साधन का मन पर प्रभाव, पंच महापाप, निम्न देशों के शब्द पकड़कर ऊँचे लोकों के शब्द पकड़ सकते हैं
15. सगुण-निर्गुण-उपासना के भेद, उपनिषदों के शब्दातीत पद और श्रीमद्भगवद्गीता के क्षेत्रज्ञ तत्त्व के परे कोई अन्य तत्त्व नहीं है
16. सारशब्द के अतिरिक्त मायिक शब्दों का भी ध्यान आवश्यक है। दृष्टियोग से शब्दयोग आसान है
17. जड़ात्मक प्रकृति मण्डल में सारशब्द की प्राप्ति युक्ति-युक्त नहीं, शब्द-ध्यान भी ज्योति-मण्डल में पहँुचा देता है

पारा 71 से 80 तक
18. सारशब्द अलौकिक है । इसकी नकल लौकिक शब्दों में नहीं हो सकती-किसी वर्णात्मक शब्द को सारशब्द की नकल कहना अयुक्त है
19. जो सब मायिक शब्द नीचे के दर्जे में भी सुने जा सकते हैं, वे ही ऊपर दर्जे में भी सुनाई पड़ सकते हैं; इनका अभ्यास भी उचित ही है
20. सूक्ष्म मण्डल के शब्द स्थूल मण्डल के शब्द से विशेष सुरीले और मधुर होते हैं, कैवल्य पद में शब्द की विविधता नहीं है, गुरु-भक्ति बिना परम कल्याण नहीं
21. सद्गुरु की पहचान, उनकी श्रेष्ठता, गुरु के आचरणका शिष्य के ऊपर प्रभाव

पारा 81 से 90 तक
21. सद्गुरु की पहचान, उनकी श्रेष्ठता, गुरु के आचरणका शिष्य के ऊपर प्रभाव
22. गुरु की आवश्यकता, गुरु का सहारा
23. गुरु की कृपा का वर्णन, गुरु-भक्ति
24. सन्तमत की उपयोगिता, भिन्न-भिन्न इष्टों की आत्मा अभिन्न है
25. नादानुसन्धान की विधि, यम-नियम के भेद

पारा 91 से 100 तक
25. नादानुसन्धान की विधि, यम-नियम के भेद
26. तीन बन्द, ध्यानाभ्यास से प्राण-स्पन्दन का बंद होना
27. मन पर दृष्टि का प्रभाव श्वास के प्रभावसे अधिक है, साधक का स्वावलम्बी होना आवश्यक है
28. मांस-मछली और मादक द्रव्यों का परित्याग आवश्यक है

पारा 101 से 107 तक
29. शुद्ध आत्म-स्वरूप अनन्त है, इसका कहीं से आना-जाना नहीं माना जा सकता
30. जीवता का उदय और अन्त, मोक्ष-साधन में लगे हुए अभ्यासी की गति, परम प्रभु की सृष्टि-मौज का केन्द्र में लौटना असम्भव
31. ईश्वर की भक्ति का साधन और मुक्ति का साधन एक ही है
32. परम प्रभु सर्वेश्वर के अपरोक्ष ज्ञान प्राप्त करने का साधन
33. ॐकार-वर्णन
34. सगुण-निर्गुण और सगुण-अगुण पर अनाम की उपासनाओं का विवेचन

पद्य (40)

ईश्वर-स्तुति
01. सब क्षेत्र क्षर अपरा परा पर
02. सर्वेश्वरं सत्य शांति स्वरूपं

सद्गुरु-स्तुति
03. नमामी अमित ज्ञान रूपं कृपालं
04. सद्गुरो नमो सत्य ज्ञानं स्वरूपं
05. सत्य ज्ञानदायक गुरु पूरा
06. सम दम और नियम यम दस-दस
07. मंगल मूरति सतगुरु
08. जय-जय परम प्रचण्ड तेज
09. सतगुरु सत परमारथ रूपा
10. जय जयति सद्गुरु जयति जय
11. सतगुरु सुख के सागर शुभ गुण आगर

आत्म-स्वरूप
12. प्रभु अकथ अनाम अनामय
13. नहीं थल, नहीं जल, नहीं वायु
14. है जिसका नहीं रंग नहिं रूप

उपदेश
15. सृष्टि के पाँच हैं केन्द्रन
16. पाँच नौबत विरतन्त कहौं
17. खोजो पन्थी पंथ तेरे घट भीतरे
18. नित प्रति सत्संग कर ले प्यारा
19. यहि मानुष देह समया में
20. अद्भुत अन्तर की डगरिया
21. सुनिये सकल जगत के वासी
22. समय गया फिरता नहीं
23. सन्तमते की बात कहूँ साधक हित लागी
24. मुक्ती मारग जानते
25. सत्य सोहाता वचन कहिय
26. योग-हृदय वृत्त केन्द्र-विन्दु
27. योग हृदय में वास ना
28. एकविन्दुता दुर्बीन हो
29. योग हृदय-केन्द्र-विन्दु में
30. गुरु हरि चरण में प्रीति हो
31. प्रभु मिलने जो पथ धरि जाते
32. सुष्मनियाँ में नजरिया थिर होइ
33. जीवो! परम पिता निज चीन्हो
34. सूरति दरस करन को जाती
35. भाई योग-हृदय-वृत्त-केन्द्र-विन्दु
36. मन तुम बसो तीसरो नैना महँ
37. जहाँ सूक्ष्म नाद ध्वनि आज्ञा आज्ञाचक्र

आरती
38. अज अद्वैत पूरण ब्रह्म पर की
39. आरती परम पुरुष की कीजै
40. आरती अगम अपार पुरुष की
 

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